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मुख

विक्षनरी से

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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मुख ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. मुँह । आनन ।

२. घर का द्वार । दरवाजा ।

३. नाटक में एक प्रकार की संधि ।

४. नाटक का पहला शब्द ।

५. किसी पदार्थ का अगला या ऊपरी खुला भाग ।

५. शब्द ।

६. नाटक ।

८. वेद ।

९. पक्षी का चोंच ।

१०. जीरा ।

११. आदि । आरंभ ।

१२. बड़हर ।

१३. मुरगावी ।

१४. किसी वस्तु से पहले पड़नेवाली वस्तु । आगे या पहले आनेवाली वस्तु । जैसे, रजनीमुख =संध्या काल ।

मुख ^२ वि॰ प्रधान । मुख्य । मुहा॰—मुख देखकर जीना=(किसी के) सहारे वा भरोसे जीना । (किसी के) आसरे जीना । उ॰— सब दिनों मुख देख जीवट का जिए । लात अब कायरपने की क्यों सहें ।—चुभते॰, पृ॰ १३ । मुख पर ताला रहना=मुँह बंद रहना । कुछ न बोलना । उ॰— चित फोटो देखे चिरत, सुनियो अपजस मोर । रसिया मुख तालो रहै जाइ वाक्तो जोर ।—बाँकी॰, ग्रं॰, भा॰ २, पृ॰ ११ । मुख सूखना= मुरझा जाना । निराश हो जाना । उ॰— वे भला आप सूख जाते क्या । मुख न सूखा जवाब सुखा सुत ।—चुभते॰, पृ॰ १३ ।